लल्लन चड्डी का अंत! भाग-एक
लल्लन को अपने अस्पताल के प्रबंधन
से अनगिनत शिकायतें थी, उसे लगता था की प्रबंधन काफी सुस्त, लाचार और अयोग्य है.
जब भी कोई मरीज या उसके
परिजन अपना रोष लल्लन की कार्यप्रणाली के प्रति
व्यक्त करते तो लल्लन को लगता की अस्पताल का प्रबंधन उसकी सहायता और रक्षा
नहीं कर रहा है या किसी को भी लल्लन के प्रति असंतोष जाहिर नहीं करना चाहिए,
क्यूंकि कोई भी गलती लल्लन की नहीं अपितु अस्पताल प्रबंधन की है.
एक बार सेठ भंगारवाला की धर्म
पत्नी को तेज बुखार आ गया, पुरे कसबे में सिर्फ एक ही अस्पताल होने के कारण उन्हें
लल्लन के अस्पताल में भर्ती करवाया गया. लल्लन ने बिना किसी से पूछे, उनके इलाज की
जिम्मेदारी स्वयं उठा ली, बड़े डाक्टर साहब लल्लन की खामियों और लापरवाही से भली
भाँती वाकिफ थे अत: उन्होंने लल्लन को कहा की वो सेठानी जी की जगह किसी अन्य रोगी का
ध्यान रखे पर लल्लन जिद पकड़ कर बैठ गया, सेठ भंगारवाला को अपने हाथ के फोड़े वाला कांड
याद आ गया और उन्होंने डाक्टर व अन्य लोगों से विनती की किसी भी प्रकार लल्लन को
उनकी पत्नी की देख रेख की जिम्मेदारी नहीं दी जाए परन्तु लल्लन अस्पताल में
रोने धोने लग गया, कहने लगा की सेठानीजी उसकी माँ के समान है, यदि उसे सेठानीजी का
इलाज करने नहीं दिया गया तो वो रो रो कर अपने प्राण त्याग देगा. ऐसा नहीं था की
उसे सेठानीजी से कोई विशेष मोह था, अपितु उसे लगा की वो सेठानी जी के इलाज और देख रेख
के नाम पर सेठ भंगारवाला से मोटी धनराशि इनाम स्वरुप वसूल लेगा.
उसके हठ के आगे सभी मजबूर
हो गए और नहीं चाहते हुए भी उसे इजाजत दे दी गयी. बड़े डाक्टर साहब ने सबसे पहले
कुछ इंजेक्शन लिखे, लल्लन ने पर्चा देखा और सिर्फ सिरिंज एवं डिस्टिल्ल्ड वाटर मंगवाया
और बिना दवाई मिलाए सिर्फ पानी का इंजेक्शन सेठानी जी को लगा दिया, लल्लन सेठ जी
से बोला “यदि कोई और नर्स, डाक्टर या कम्पाउन्डर होता तो बड़ी बेरहमी से
इंजेक्शन ठोक देता, सेठानी का कमजोर शरीर शायद नहीं झेल पाता और उनकी जान भी जा
सकती थी, मैंने बड़े अहिस्ते और नाजुक हाथ से लगाया है और सेठानी के प्राणों की
रक्षा की है, आपको खुश होकर मुझे दो हजार रूपये इनाम देना चाहिए” सेठ को यह सुनकर
चक्कर आने लागे उसने कहा “भाई लल्लन इनाम की बात बाद में करना पहले यह बताओ की तुमने
इंजेक्शन में दवाई क्यूँ नहीं मिलाई और सिर्फ पानी का इंजेक्शन क्यूँ लगाया?”
तो लल्लन बोला “बुखार की
वजह से इनका शरीर अभी कमजोर है,
दवाई से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा और बुखार
में इनके शरीर का तापमान भी बढ़ गया है और सारा पानी उड़ गया है, इसीलिए शरीर में ताकत लाने के लिए और पानी की मात्रा
बराबर करने हेतु अभी इन्हें सिर्फ पानी का इंजेक्शन लगाया है”
सेठ बोला “अरे तो
इंजेक्शन से तो चंद बूँद ही पानी शरीर में जायेगा, पानी की मात्रा ही बढानी है तो
ग्लूकोज चढा दो”
यह सुनकर लल्लन सकपका गया,
उसने यह तो सोचा ही नहीं था, उससे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था, फिर उसने बहुत ही
गंभीर चेहरा बनाया और आखें बंद कर ली और कोई गहन विचार करने का नाटक किया, कुछ समय
बाद आखें खोली और बोला “अरे सेठ जी आप कुछ समझते नहीं हो सेठानी की हालत अभी
बहुत नाजुक है, वो इतना सारा पानी और ग्लूकोज नहीं झेल पाएंगी, उन्हें थोडा थोडा करके,
इंजेक्शन द्वारा ही पानी देना पड़ेगा.”
लल्लन काफी देर तक सेठानी
के पास ही बैठा रहा और हर एक घंटे बाद पानी का इंजेक्शन लगाता रहा, किसी भी अन्य
व्यक्ति को सेठानी के पास नहीं जाने दिया, नतीजतन सेठानी की तबियत में कोई सुधार
नहीं हुआ, जब उससे पुछा गया की ऐसा क्यूँ हो रहा है तो, लल्लन ने कहा “अरे मैं
क्या बताऊँ, इस अस्पताल में मिलने वाली हर चीज वाहियात है, जो डिस्टिल्ल्ड वाटर है
वो उच्च गुणवत्ता का नहीं है, पूरा असर नहीं कर रहा हैं और सिरिंज भी बांकी चुकी
है अत: पानी सही नस में नहीं जा रहा है.”
सेठ को लगा की अब कुछ करना
पड़ेगा, उसने लल्लन को सौ रूपये दिए और कहा “लल्लन भैया आपने सेठानीजी का इतना
ख्याल रखा उसके लिए धन्यवाद, अब आप भी थक गए होगे, घर जाओ और विश्राम करो ताकि कल
पुन: सेठानीजी की सेवा कर सको और इन पैसों से कुछ खा पी लेना”
लल्लन चिल्लाया “नहीं सेठजी
मैं मेरी माँ को यहाँ अकेला छोड़ कर नहीं जाऊँगा, मुझे अस्पताल के बाकी के अकुशल
लोगों पर कतई विश्वास नहीं है, इन्हीं कुछ हो गया तो मैं अपने आप को कभी क्षमा
नहीं कर पाऊंगा.”
सेठजी ने सौ का नोट वापस
लिया और पांच सौ रूपये उसे दिया और कहा “अब आप जाओ और विश्राम करो.” लल्लन ने
चुपचाप पांच सौ रूपये जेब में रखे और घर की तरफ चल दिया. उसके जाते हि डाक्टर ने
सेठानी को दवा दी और उन्हें थोड़ा आराम मिला.
यह सिलसिला कुछ दिनों तक यूँही
चलता रहा, लल्लन रोज सुबह आकर सेठानी के पास बैठ जाता और पानी के
इंजेक्शन देता रहता, थोड़ी देर बाद सेठजी आते और लल्लन को कुछ पैसे देकर रवाना कर
देते, उसके जाते ही डाक्टर सेठानी को दवा दे जाते, इस तरह सेठानी को दवा एक समय कम
मिलती थी और उनकी तबियत औसत से ज्यादा समय में सुधरने लगी. एक दिन लल्लन ने सेठ
भंगारवाला को बोला “देखिए सेठ जी, इस अस्पताल में सब दोयम दर्जे की व्यवस्था और
दवाइयां है, यहाँ चाहकर भी कोइ रोग मुक्त नहीं हो सकता, मैं कभी से बड़े डाक्टर
साहब से मूलभूत परिवर्तन करने के बारे में कह रहा हूँ पर वो मेरी सुनते ही नहीं
है, यहाँ अगर मेरी चले तो लोग अस्पताल आने से पहले ही ठीक हो जाएंगे, पर आपको बाकी
सब से क्या लेना देना? लेकिन मेरे पास एक तरीका है जिससे सेठानी एकदम से ठीक हो
जायेगी.” सेठ ने उसकी बात सुनी अनसुनी कर दी, पर लल्लन जिद्द पर अड् गया और सेठानी
के वार्ड में आमरण अनशन पर बैठ गया, सबने सोचा की यह अगर गया नहीं तो सेठानी को
बाकी की दवाए नहीं दे पायेंगे, लल्लन को अपनी बात कहने का अवसर दिया गया, लल्लन बोला
“सेठानीजी को अब दवा की नहीं बल्कि दुआ की जरुरत है, मुझे दुआ की व्यवस्था करने
दो, मुझे कोई रोकेगा नहीं मैं थोड़ी देर बाद वापस आऊंगा” यह सुनकर सभी ने चैन
की सांस ली और लल्लन कहीं चला गया.
कुछ घंटों बाद
लल्लन अपने झाड फूंक करने वाले भाई फक्कड को साथ लेकर अस्पताल आता है और सीधे
दोनों सेठानी के वार्ड में चले जाते हैं, फक्कड अपने साथ तमाम झड फूंक करने का
साजो सामान जैसे की चिमटा, मंजीरे, मोर पंख का झाडू, अनेकानेक मालाएं, धूपानिया,
पानी का कलश-कमंडल व और भी अजीबो-गरीब चीजे लेकर आता है और सेठानी के पास अपनी धुनी
रमा कर बैठ जाता है,
लोग लल्लन से
पूछते हैं की यह क्या हो रहा है? लल्लन उत्तर देता है “अरे भाई मैं कब से डाक्टर साहब
से कह रहा हूँ की अस्पताल को तोड़ कर नया बनवाए इस अस्पताल का नक्शा सही नहीं है यहाँ
दैवीय शक्तियों की पूर्ण कृपा नहीं आती है, अत: सेठानी जी ठीक नहीं हो रही, पर मेरी
कोई सुनता ही नहीं है. इसीलिए मैं फक्कड को लेकर आया हूँ, वो यहाँ सेठानीजी के लिए
अनुष्ठान करेगा”
फक्कड चड्डी जोर
जोर से मन्त्र पढ़ने लगता है, कभी उठकर नाचने लगता है, कभी पानी सेठानी पर छिडकता
है तो कभी धुप दीप घुमाता है, फिर सेठानी के पलंग के नीचे लोटने लगता है, कभी जोर
जोर से फर्श पर कूदने लगता है, कभी कोई मिटटी सेठानी के मुंह में डालता है तो कभी
कोई पत्ती. कभी वो दोनों भाई झाडू पकड़ कर अस्पताल के बाहर भागते तो कभी अंदर. कभी वार्ड
का दरवाजा बंद करके अंदर फक्कड चड्डी रोने लगता तो कभी हँसने लगता. इस प्रकार एक
सर्कस अस्पताल में शुरू हो जाता है, तीन घंटे तक यह सब चलने के बाद लल्लन बड़े
डाक्टर साहब और सेठ को अस्पताल के सूनसान कोने में बुलाता है और कहता है की “मेरे भाई
ने इस समस्या का आखरी समाधान खोज लिया है पर उसमे आप दोनों की मदद चाहिए”
डाक्टर और सेठ
पूछते हैं की उन्हें क्या करना है?
लल्लन बोलता है “मेरे
भाई के अनुसार आप दोनों को अपनी अपनी आखों पर पट्टी बांधकर अस्पताल के पीछे वाले
अहाते में खडा होना है, मैं और फक्कड दोनों सेठानी को लेकर अस्पताल की सबसे ऊँची छत
पर जाएंगे और अपनी आखों पर पट्टी बाँध कर उन्हें नीचे फेंकेंगे, आपको उनकी आवाज
सुन कर उन्हें पकडना होगा, यदि डाक्टर ने पकड़ा तो वो निरोगी हो जायेगी और सेठ न
पकड़ा तो...” लल्लन अपनी बात पूरी करता उसके पहले ही सेठजी ने उसको एक खींचकर थप्पड़
रसीद कर दिया और भागते हुए वार्ड की तरफ गए, वार्ड पूरा धुएं से भरा हुआ था, सभी लोग
जोर जोर से खांस रहे थे कुछ भी देख पाना मुश्किल था, सेठजी जैसे तैसे सेठानी के
पलंग तक पहुंचे तो देखते है की, सेठानी के पलंग पर फक्कड सर के बल खडा होकर कोई मन्त्र
जप रहा है, सेठ जी उसे पूछते हैं की सेठानी कहाँ है? फक्कड कहता है “अरे वाह सेठजी
आप आ गए? मैंने अभी मन्त्र जाप करते हुए आपको ही आदेश किया था, आप तक मेरा आदेश
पहुँच गया ना? चलिए अंतिम क्रिया जो लल्लन ने आपको बतायी होगी की छत पर जाकर करनी
है, उसे करने से पहले आप मेरा मेहनताना कुल एक लाख एक रूपये मुझे दे दीजिए” सेठ जी
फक्कड को लात लगाते हैं और वो धडाम से पलंग से नीचे गिर जाता है. एक दूसरा मरीज
सेठजी को बताता है की सेठानी बाहर की तरफ गयी है, सेठ भी वार्ड के बाहर जाता है, अन्य
परेशान मरीज भी मौका देखकर फक्कड की धुनाई शुरू कर देते हैं.
सेठ-सेठानी अपने
घर चले जाते हैं. थोड़ी देर में फक्कड रोता हुआ लल्लन के पास जाता है और आपबीती सुनाता
है, यह सुन कर लल्लन गुस्से से फडकता हुआ बड़े डाक्टर के पास जाता है और कहता है “सुनो
जी आपका अस्पताल पर कोई नियंत्रण नहीं है, आपने यहाँ सभी दवाइयां और उपकरण घटिया
स्तर के मंगवाए हैं जिसके कारण सेठानी ठीक नहीं हुयी, और सेठ ने आपका गुस्सा मेरे और
मेरे मासूम भाई पर हिंसक होकर निकाला और आप हमारी रक्षा भी नहीं कर पाए.” बड़े डाक्टर
साहब ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी और पूछा की लल्लन क्या चाहता है?
लल्लन ने कहा की
उसे एक अवसर मिलना चाहिए ताकि वो अपने कौशल का सदुपयोग अस्पताल को नयी उचाईयों पर
ले जाने में कर सके, उसे लगता था की वो अपने विचारों का प्रयोग करके अस्पताल के खर्चे
कम कर सकता है, उसने और भी कई बड़ी बड़ी बाते कही और अंत में डाक्टर साहब के आगे एक प्रस्ताव
रखा, उसे कुछ दिनों के लिए अस्पताल का मुख्य प्रबंधक बना दिया जाये और सभी उसके
निर्देशों का पालन करे. संयोगवश बड़े डाक्टर साहब ने उसे सहमति प्रदान कर दी.
शेष कथा अगले भाग में.....
नोट: वर्णित समस्त पात्र, घटनाओ, कहानिया, किस्से, आदि काल्पनिक है. यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है,तो उसे मात्र एक सयोग माना जायेगा.
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